संन्यासी विद्रोह (बंगाल 1770-1820) कुछ अन्य स्रोतों में (1763- 1800)
बंगाल में बेदखल किये गए किसानों, राजाओं एवं नवाबों की विघटित फौज के सिपाहियों द्वारा ज़मींदारों एवं धार्मिक नेताओं के नेतृत्व में शुरू किया गया विद्रोह।
बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखित उपन्यास ‘आनंदमठ’ में इस विद्रोह का उल्लेख।
प्रमुख नेता-मजनू शाह
राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ को आनंदमठ उपन्यास में सम्मिलित किया गया है। आनंदमठ आगे चलकर भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के लिये प्रेरणा स्रोत बना।
चुआर विद्रोह (1766-1816)
बंगाल और बिहार क्षेत्र में। प्रमुख नेता-जगन्नाथ । कारण-सूखा तथा भू-राजस्व में वृद्धि।
वेलुथंपी का विद्रोह (1805)
त्रावणकोर (केरल) के दीवान वेलुथंपी द्वारा।
अंग्रेज़ों द्वारा दीवान की गद्दी छीन लेने तथा त्रावणकोर पर सहायक संधि लादने के विरोध में।
किट्टूर विद्रोह (1824-29)
कर्नाटक के स्थानीय शासक की मृत्यु के पश्चात् | उसके उत्तराधिकारी को अंग्रेज़ों द्वारा मान्यता नहीं देने के खिलाफ।
कर्नाटक के दिवंगत राजा की विधवा चेन्नमा द्वारा।
भील विद्रोह
महाराष्ट्र में 1820-1827 के दौरान कृषि संबंधित करों के कारण।
राजस्थान में, मोतीलाल तेजावत प्रमुख नेता (1920 के दशक में) ।
कोल विद्रोह (1831-32)
झारखंड के राँची, सिंहभूम, हजारीबाग, पलामू आदि ज़िलों में बुधो भगत के नेतृत्व में आदिवासियों की भूमि छीनकर मुसलमान व सिख समुदायों के किसानों को दिये जाने के विरोध में।
संथाल विद्रोह (हुल विद्रोह) (1855-56)
भागलपुर से राजमहल पहाड़ियों के बीच (दामन-ए-कोह क्षेत्र) घटित। सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में।
जमींदारों, साहूकारों के शोषण व भूमि अधिकारियों के दुर्व्यवहार के विरुद्ध।
मुंडा विद्रोह (उलगुलान) (1899-1900)
प्रारंभ में मुंडा आदिवासियों की पारंपरिक भूमि व्यवस्था (खूँटकट्टी व्यवस्था) में परिवर्तन के विरुद्ध। आगे चलकर बिरसा मुंडा ने इसे राजनीतिक-धार्मिक आंदोलन का रूप दे दिया।
1900 की शुरुआत में बिरसा गिरफ्तार और जेल में मृत्यु ।