छठी सदी ई.पू. के धार्मिक आंदोलन
छठी सदी ई.पू. के उत्तरार्द्ध में मध्य गंगा के मैदानों में अनेक धार्मिक संप्रदायों का उदय हुआ जिनमें जैन और बौद्ध सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संप्रदाय थे।
जैन धर्म
जैन परंपरा के अनुसार उनके धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं जिनमें ऋषभदेव प्रथम, पार्श्वनाथ 23वें तथा महावीर 24वें तीर्थंकर थे
जैन तीर्थंकर के नाम एवं क्रम | प्रतीक चिह्न |
ऋषभदेव या आदिनाथ (प्रथम) | साँड़ (वृषभ) |
अरिष्टनेमि (बाइसवें | शंख |
पार्श्वनाथ (तेइसवें) | सर्प |
महावीर (चौबीसवें) | सिंह |
- पार्श्वनाथ के पूर्व के तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता संदिग्ध है।
- हालाँकि ऋषभदेव तथा अरिष्टनेमि का उल्लेख ऋग्वेद में है।
- पार्श्वनाथ काशी के इक्ष्वाकुवंशीय शासक अश्वसेन के पुत्र थे।
- वर्धमान महावीर का जन्म 540 ई.पू. में वैशाली के कुंडग्राम में हुआ।
- उनके पिता ‘सिद्धार्थ’ ज्ञातृक कुल के प्रधान थे और माता ‘त्रिशला’ लिच्छवी नरेश चेटक की बहन थी।
- महावीर की पत्नी का नाम यशोदा एवं पुत्री का नाम अणोज्जा प्रियदर्शना था।
- महावीर के बड़े भाई का नाम नंदिवर्द्धन था।
- महावीर ने 30 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया तथा 12 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद जृम्भिकग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे उन्हें ‘कैवल्य’ की प्राप्ति हुई।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर केवलिन, जिन (विजेता), अर्ह (योग्य), निग्रंथ (बंधन रहित) कहलाए।
- बौद्ध साहित्य में महावीर को निगठ-नाथपुत्त कहा गया है।
- महावीर ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में दिये।
- महावीर के प्रथम अनुयायी उनके जामाता ( प्रियदर्शना के पति) जामालि बने।
- महावीर ने अपने अनुयायियों को 11 गणों (समूहों) में विभाजित किया था तथा प्रत्येक गण को एक-एक प्रमुख शिष्य (गणधर) नेतृत्व में रखा।
- आर्य सुधर्मा अकेला गणधर था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा।
- जैन धर्म के पाँच व्रत हैं- अहिंसा (हिंसा न करना), अमृषा (झूठ न बोलना), अचौर्य (चोरी न करना), अपरिग्रह ( संपत्ति अर्जित नहीं करना) तथा ब्रह्मचर्य (इंद्रिय निग्रह करना)। शुरुआत के चार व्रत पार्श्वनाथ के समय से ही चले आ रहे थे तथा पाँचवा व्रत महावीर ने जोड़ा।
- जैन धर्म में मुख्यतः सांसारिक बंधनों से छुटकारा पाने के उपाय बताए गए हैं जो सम्यक् ज्ञान, सम्यक् ध्यान और सम्यक् आचरण से प्राप्त किया जा सकता है। इसे ही जैन त्रिरत्न कहा गया है।
- उनके अनुसार पूर्वजन्म के कर्म के अनुसार ही किसी का जन्म उच्च या निम्न कुल में होता है। जैन धर्म अनीश्वरवादी है।
- ‘स्यादवाद’ या ‘सप्तभंगी नय’ जैन धर्म का महत्त्वपूर्ण दर्शन है जो ‘ज्ञान की सापेक्षता’ की बात करता है।
- कालांतर में जैन धर्म दो संप्रदायों में बँट गया- श्वेतांबर (सफेद वस्त्र धारण करने वाला) तथा दिगंबर (नग्न रहने वाला)
- एक परंपरा के अनुसार महावीर के निर्वाण के 200 वर्षों बाद मगध में भारी अकाल पड़ा।
- फिर प्राण बचाने बहुत से जैन भद्रबाहु के नेतृत्व में दक्षिण चले गए।
- ये दक्षिणी जैन दिगंबर कहलाए तथा जो स्थूलभद्र के नेतृत्व में मगध में ही रह गए, श्वेतांबर जैन कहलाए।
- श्वेतांबर परंपरा के अनुसार 19वें तीर्थंकर ‘मल्लिनाथ’ स्त्री हैं जबकि दिगंबर इन्हें पुरुष मानते हैं।
- प्रथम जैन संगीति पाटलिपुत्र में स्थूलभद्र की अध्यक्षता में संपन्न हुई।
- एक अन्य जैन संगीति गुजरात के वल्लभी नामक स्थान पर देवर्धि क्षमाश्रवण की अध्यक्षता में छठी शताब्दी में संपादित हुई। इसी सम्मेलन में प्राकृत भाषा में जैन ग्रंथों का संकलन हुआ।
- जैन धर्म का प्राचीनतम साहित्य ‘पूर्व’ कहलाता है जिसकी संख्या 14 थी। कालांतर में इसका संकलन ‘आगम’ के रूप में हुआ जिसकी संख्या 46 है।
- प्रमुख जैन ग्रंथों में हेमचंद्र रचित परिशिष्टपर्वन और हरिभद्र सूरी रचित अनेकांतविजय इत्यादि महत्त्वपूर्ण हैं।
- जैन धर्म को चंद्रगुप्त मौर्य, महापद्मनंद, अमोघवर्ष तथा खारवेल इत्यादि शासकों का सरंक्षण प्राप्त था।
- 468 ई.पू. में राजगीर के समीप पावापुरी में, मल्लराजा सृस्तिपाल राजप्रासाद में महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था।
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बौद्ध धर्म
- गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. में शाक्य क्षत्रिय कुल में कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी (वर्तमान नेपाल में) में हुआ।
बुद्ध के जीवन से संबंधित बौद्ध धर्म के प्रतीक
घटना | प्रतीक |
जन्म | कमल |
गृह त्याग (महाभिनिष्क्रमण) | घोड़ा |
ज्ञान प्राप्ति (निर्वाण) | पीपल (बोधि वृक्ष) |
प्रथम उपदेश | धर्मचक्र (पहिया) |
मृत्यु (महापरिनिर्वाण) | स्तूप |
- गौतम के पिता शुद्धोधन गणतांत्रिक शाक्यों के प्रधान थे तथा उनकी माता महामाया कोसल राजवंश से संबद्ध थीं।
- गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
- इनका विवाह यशोधरा से हुआ। इनके पुत्र का नाम राहुल था।
- 29 वर्ष की अवस्था में सिद्धार्थ ने गृह त्याग (महाभिनिष्क्रमण) दिया।
- गृह त्याग करने के बाद सिद्धार्थ ने वैशाली में अलार कलाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की, जो उनके प्रथम गुरु बने।
- इसके पश्चात् उन्होंने राजगीर में रुद्रक रामपुत्र से शिक्षा ग्रहण की।
- कठिन तपस्या के बाद वैशाख पूर्णिमा की रात निरंजना (फल्गु) नदी के किनारे, पीपल वृक्ष के नीचे 35 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ को ज्ञान (निर्वाण) प्राप्त हुआ।
- ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् सिद्धार्थ बुद्ध कहलाए और जिस स्थान पर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ वह बौद्ध गया कहलाया।
- उन्होंने अपना प्रथम उपदेश, जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहते हैं, सारनाथ (ऋषिपत्तन) में दिया। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिये।
- बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश कोशल की राजधानी श्रावस्ती में दिये।
- महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्यों का प्रतिपादन किया- (i) दुःख, (ii) दुःख समुदाय, (iii) दु:ख निरोध (iv) गामिनी प्रतिपदा। चौथे आर्य सत्य के अंतर्गत ही अष्टांगिक मार्ग की अवधारणा दी गई है। बुद्ध, धम्म तथा संघ बौद्ध त्रिरत्न हैं।
- बौद्ध धर्म ईश्वर और आत्मा में विश्वास नहीं करता है इसलिये इसे अनीश्वरवादी और अनात्मवादी कहा गया है। किंतु बौद्ध धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है।
- बौद्ध धर्म का प्रमुख सिद्धांत प्रतीत्यसमुत्पाद है जिसका अर्थ है कि किसी वस्तु के होने पर किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति होती है।
- बौद्ध सिद्धांत ‘क्षणभंगवाद’ के अनुसार सृष्टि नश्वर है।
- बौद्ध धर्म में वर्ण व्यवस्था की कटु आलोचना की गई तथा संघ में सभी वर्गों तथा स्त्रियों का प्रवेश स्वीकार किया गया है।
- संघ में प्रविष्ट होने को ‘उपसंपदा’ कहा जाता था।
- बुद्ध के अनुयायी भिक्षुक और उपासक नामक दो भागों में विभाजित थे।
- जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रसार के लिये संन्यास ग्रहण किया वे भिक्षुक कहलाएँ जबकि गृहस्थ जीवन के साथ-साथ बौद्ध धर्म अपनाने वाले उपासक कहे गए।
बौद्ध संगीति
- प्रथम बौद्ध संगीति अजातशत्रु के शासनकाल में 483 ई.पू. में राजगृह में हुई।
- इसके अध्यक्ष महाकस्सप थे। इस संगीति में आनंद और उपालि ने क्रमशः सुत्तपिटक और विनयपिटक का संकलन किया।
- द्वितीय बौद्ध संगीति कालाशोक के शासनकाल में 383 ई.पू. में वैशाली में हुई।
- इसकी अध्यक्षता साबकमीर (सबाकामी) ने की। इस संगीति में मठ संबंधी नियम को लेकर मतभेद हो गया तथा
- बौद्ध धर्म ‘स्थिविरवादी/थेरवादी’ तथा महासंघिक में बँट गया।
- तृतीय बौद्ध संगीति अशोक के समय 250 ई.पू. में पाटलिपुत्र में हुई।
- इसके अध्यक्ष मोग्गलिपुत्ततिस्स थे। इसमें अभिधम्मपिटक का संकलन हुआ।
- चतुर्थ बौद्ध संगीति ईस्वी की प्रथम शताब्दी में कश्मीर के कुंडलवन में हुई।
- इस समय कनिष्क का शासन था। इस सभा की अध्यक्षता वसुमित्र ने की तथा अश्वघोष उपाध्यक्ष थे।
- इस संगीति में बौद्ध धर्म महायान तथा हीनयान में विभाजित हो गया।
- नागसेन द्वारा रचित मिलिन्दपण्हो ग्रंथ पालि भाषा में है जबकि अश्वघोष रचित बुद्धचरित तथा सौन्दरानंद संस्कृत भाषा में है।
- 483 ई.पू. में कुशीनगर नामक स्थान पर महात्मा बुद्ध की मृत्यु (महापरिनिर्वाण) हो गई।
- बुद्ध मूर्तियों का सर्वाधिक निर्माण गांधार शैली में किया गया किंतु बुद्ध की प्रथम मूर्ति संभवतः मथुरा शैली के अंतर्गत बनी।
गौतम बुद्ध को एशिया का ज्योतिपुंज (Light of Asia) कहा जाता है। बोधिसत्व की अवधारणा महायान संप्रदाय से संबंधित है। |