द्रव्यमान भार और संतुलन

द्रव्यमान (Mass)

  • किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व की माप है। किसी वस्तु का द्रव्यमान जितना अधिक होगा, उतना ही अधिक उसका जड़त्व होगा।
  • यह ध्यान देने योग्य बात है कि द्रव्यमान सदैव स्थिर रहता है। यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदलता नहीं है।
  • उदाहरणस्वरूप- किसी व्यक्ति का द्रव्यमान जितना पृथ्वी पर होगा, उतना ही चंद्रमा पर ।

भार (Weight)

What is the difference between mass and weight? द्रव्यमान, भार और संतुलन

पृथ्वी पर किसी वस्तु का भार वह बल है, जिससे यह पृथ्वी के केंद्र की ओर आकर्षित होती है। यह बल पृथ्वी के गुरुत्वीय त्वरण (g) तथा वस्तु के द्रव्यमान (m) पर निर्भर करता है। इसे इस प्रकार करते हैं

भार (W) = द्रव्यमान (m) x गुरुत्वीय त्वरण (g)

W = mg

इसका SI मात्रक न्यूटन है।

किसी वस्तु का द्रव्यमान नियत रहता है, परंतु भार नियत नहीं रहता है।

गुरुत्व केंद्र (Centre of gravity)

  • किसी वस्तु का गुरुत्व केंद्र वह बिंदु है जहाँ वस्तु का संपूर्ण भार कार्य करता है, चाहे वस्तु जिस भी स्थिति में रखी जाए।
  • वस्तु का भार इसी गुरुत्व केंद्र से सदैव नीचे की और कार्य करता है।
  • किसी भी वस्तु के संतुलन के लिये यह आवश्यक है कि गुरुत्व केंद्र पर भार को संतुलित करने के लिये परिमाण में बराबर तथा विपरीत दिशा में बल लगे।

संतुलन के प्रकार (Types of equilibrium)

 स्थायी संतुलन (Stable Equilibrium)

  • यदि किसी वस्तु की स्थिति में बल लगाने से थोड़ा परिवर्तन हो जाए, परंतु बल को हटाते ही वस्तु अपनी पूर्व स्थिति में वापस आ जाए तो इसे ‘स्थायी संतुलन’ कहते है।

अस्थायी संतुलन (Unstable Equilibrium)

  • यदि किसी वस्तु की स्थिति में बल के द्वारा परिवर्तन कर दिया जाए परंतु बल को हटाते ही वस्तु अपनी पूर्वावस्था में न आ पाए तो इसे ‘अस्थायी संतुलन’ कहते हैं।

उदासीन संतुलन (Neutral Equilibrium)

  • एक यदि वस्तु को संतुलन की स्थिति से थोड़ा सा विस्थापित करके छोड़ने पर वस्तु अपनी नई स्थिति में भी संतुलित हो जाती है तो इसे ‘उदासीन संतुलन’ कहते हैं।

स्थायी संतुलन की आवश्यक शर्त

  • वस्तु का गुरुत्व केंद्र जितना संभव हो सके, नीचे हो।
  • गुरुत्व केंद्र से जाने वाली उर्ध्वाधर रेखा वस्तु के आधार से गुजरनी चाहिये।

दैनिक जीवन में उदाहरण

  • प्रसिद्ध पीसा की मीनार का झुके होने के बावजूद न गिरने का कारण यही है कि इसके गुरुत्व केंद्र से जाने वाली रेखा इसके आधार से होकर गुजरती है।
  • बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में आधार को विस्तृत और अपेक्षाकृत भारी बनाया जाता है, जिससे कि इमारत का गुरुत्व केंद्र आधार के निकट रहे। यह इमारत को स्थायित्व प्रदान करता है।
  • मोटर गाड़ियों के निर्माण के दौरान यह कोशिश की जाती है कि मोटर गाड़ियों के गुरुत्व केंद्र आधार के मध्य में और जितना संभव हो सके नीचे रहे।

अभिकेंद्रीय बल (Centripetal Force)

  • जब कोई पिंड r त्रिज्या वाले किसी वृत्तीय पथ पर गति करता है। तो पिंड पर वृत्त के केंद्र की ओर एक बल कार्य करता है, जिसे ‘अभिकेंद्रीय बल’ कहते हैं।
  • इस बल की अनुपस्थिति में कोई पिंड वृत्तीय पथ पर गति नहीं कर सकेगा।
  • M द्रव्यमान के पिंड को r त्रिज्या के वृत्ताकार मार्ग पर u चाल से गति करने के लिये आवश्यक अभिकेंद्र बल  F = mv2 / b r

अपकेंद्रीय बल (Centrifugal Force)

  • जब कोई पिंड वृत्ताकार पथ पर गति करता है तो अभिकेंद्रीय बल के विपरीत बाहर की ओर लगने वाले बल को ‘अपकेंद्रीय बल’ कहते हैं।
  • यह बल एक प्रकार का छद्म बल होता है। वस्तुतः वृत्ताकार पथ पर गति करने वाले पिंड में त्वरण होता है, इसलिये इस प्रकार के बल का आभास होता है।
  • कपड़ा साफ करने की मशीन, दूध से मक्खन निकालने की मशीन अपकेंद्रीय बल के सिद्धांत पर कार्य करती है।

घर्षण बल (Friction Force)

  • यह वह बल है, जो संपर्क में रखे दो पृष्ठों के बीच सापेक्ष गति का विरोध करता है।
  • यह उन दो पृष्ठों की प्रकृति पर निर्भर करता है, जिनके बीच सापेक्षिक गति पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है।
  • किसी स्थिर वस्तु में गति प्रदान करने की अपेक्षा गतिमान वस्तु को गति में बनाए रखना आसान होता है, क्योंकि स्थिर पृष्ठों के बीच लगने बाला स्थैतिक घर्षण बल, गतिशील पृष्ठों के बीच लगने वाले सर्पी घर्षण बल से अधिक होता है।
  • दैनिक जीवन में सभी क्रियाकलापों के लिये घर्षण बल आवश्यक है।
  • हाथ से वस्तुओं का पकड़ना, वाहनों का सड़क पर गति करना इत्यादि सभी घर्षण बल के कारण ही संभव है।
  • घर्षण बल कम करने के लिये पृष्ठों को चिकना या स्नेहक का प्रयोग किया जाता है।
  • बरसात में सड़कों पर फिसलन का कारण घर्षण बल में कमी ही है।
  • चिकनी सतहों पर चलना ज्यादा जोखिम भरा होता है, क्योंकि आवश्यक घर्षण बल का अभाव होता है।
  • यही कारण है कि बर्फ की सतह पर चलना, सड़क पर चलने की अपेक्षा कठिन है।

बल आघूर्ण (Torque)

किसी अक्ष के परितः एक बल का आघूर्ण उस बल के परिमाण तथा अक्ष से बल के क्रिया रेखा के बीच की लंबवत् दूरी के के बराबर होता है गुणनफल

बल आघूर्ण (T) = बल x आघूर्ण

  • भुजा यह एक सदिश राशि है। इसका मात्रक न्यूटन मीटर है।
  • किसी बल द्वारा किसी पिंड को एक निश्चित अक्ष के परितः घुमाने की प्रवृत्ति को ‘बल आघूर्ण’ कहते हैं।
  • दैनिक जीवन में बल आघूर्ण के उदाहरण हैंडपंप एक बड़े हत्थे का लगाया जाना।
  • दरवाजों में हत्थे को किनारे पर लगाना ।
  • कुम्हार के चाक में लकड़ी फंसाने वाला गड्ढा चाक के किनारे पर होना।

बल – युग्म (Couple )

  • किसी वस्तु पर आरोपित परिमाण में बराबर, परंतु विपरीत दिशा में लगने वाले दो समानांतर बलों को ‘बल-युग्म’ कहते हैं।

बल-युग्म = बल x बल-युग्म की भुजा

बल-युग्म के दैनिक जीवन में उदाहरण

  1. पेन का ढक्कन खोलना।
  2. चाबी वाली घड़ी को चाबी दिया जाना।

सरल मशीन (Simple Machine)

  • सरल मशीन बल आघूर्ण के सिद्धांत पर कार्य करने वाली एक ऐसी युक्ति होती है, जिसकी सहायता से सुविधाजनक बिंदु पर बल लगाकर किसी वस्तु पर कोई कार्य किया जाता है।
  • जैसे-घिरनी (Pully), स्क्रूजैक (Screw Jack), उत्तोलक (Lever), आनत तल (Inclined Plane) इत्यादि ।

उत्तोलक (Lever)

  • उत्तोलक सरल मशीन का एक उदाहरण है। एक ऐसी सीधी अथवा टेढ़ी छड़, जो किसी भी निश्चित बिंदु के परितः स्वतंत्रतापूर्वक घूर्णन के लिये स्वतंत्र हो, उसे ‘उत्तोलक’ कहते हैं, उदाहरण- चिमटा, सरौता, कैंची इत्यादि।

उत्तोलक में तीन बिंदु होते हैं

आलंब (Fulcrum)

  • वह बिंदु जिसके चारों ओर उत्तोलक की छड़ स्वतंत्रतापूर्वक घूर्णन कर सकती है। उसे ‘आलंब’ कहते हैं।

आयास (Effort)

  • उत्तोलक का उपयोग करने के लिये जो बल लगाया जाता है, उसे ‘आयास’ कहते हैं।

भार (Load)

  • उत्तोलक द्वारा जिस वस्तु को उठाया या हटाया जाता है अर्थात् जिस पर कार्य किया जाता है, उसे ‘भार’ कहते हैं।

उत्तोलक तीन प्रकार के होते हैं:

प्रथम श्रेणी के उत्तोलक

  • आलंब, भार और शक्ति (आयास) के बीच में होता है जैसे- कैची, सिंडासी, हिंडोला (Seesaw), झूला, हैंड पंप इत्यादि। यांत्रिक लाभ एक से अधिक या कम हो सकता है।

द्वितीय श्रेणी के उत्तोलक

  • भार, शक्ति और आलंब के बीच में होता है जैसे- सरौता, एक पहिया वाली ठेला गाड़ी, नीबू निचोड़ने की मशीन इत्यादि। इसका यांत्रिक लाभ सदैव एक से अधिक होता है।

तृतीय श्रेणी के उत्तोलक

  • शक्ति, आलंब और भार के बीच में होता है। यांत्रिक लाभ सदैव एक से कम होता है। जैसे- स्टेपलर, चिमटा, मनुष्य का हाथ इत्यादि ।

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