दलहनी फसलोत्पादन (Pulses Production)

दलहनी फसलोत्पादन

दलहनी फसलोत्पादन के अंतर्गत क्या-क्या आते हैं?

लेग्युम (Legume) कुल की फसलों को दलहनी फसल की संज्ञा प्रदान की जाती है। ये फसलें तीनों मौसमों में उगायी जाती हैं।

किस ऋतु में कौन सी दलहन उगायी जाती है?

खरीफ ऋतु में – अरहर, उर्द, मूँग, लोबिया मोथ, सोयाबीन आदि ।

रबी ऋतु में – चना, मटर, मंसूर, खेसारी आदि

जायद ऋतु में – मूंग, उर्द, लोबिया, सोयाबीन आदि ।

ICAR से सम्बद्ध राष्ट्रीय पादप जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली के प्रो. नागेन्द्र कुमार सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने ‘अरहर’ की जीनोम अनुक्रम 2 नवम्बर 2011 को तैयार किया था। यह जीनोम अनुक्रम अरहर की लोकप्रिय किस्म ‘आशा’ (Asha) से तैयार की गई है। लोबिया और मूंग दलहन, चारा और हरी खाद के रूप में प्रयोग होते हैं  उड़द और मूंग की फसले जायद में मुख्यतः सिंचित क्षेत्रों में ही उगाई जाती है

ग्वार‘ (Cluster Bean)

‘ग्वार’ का बहुतायत उपयोग जानवरों के चारे के रूप में होता है। इसके अलावा इसके फली की सब्जी भी बनाई जाती है। संसार के कुल ग्वार उत्पादन का लगभग 75 से 80 प्रतिशत भारत और पाकिस्तान में होता है। ध्यातव्य है कि शेल गैस के निष्कर्षण में ‘ग्वार गोंद’ (Guar Gum) की महत्ता सिद्ध होने के उपरान्त विगत् कुछ समय से इसकी मांग में जबरदस्त तेजी दर्ज की गई। ज्ञातव्य है कि ग्वार गोंद को ग्वार के बीजों से निकाला जाता है। ‘हॉरिजोंटल फ्रैंकिंग’ (Horizontol Fracking) नामक एक अद्यतन प्रौद्योगिकी द्वारा शेल गैस के निष्कर्षण में ‘ग्वार गोंद’ का प्रयोग होता है। इस प्रौद्योगिकी में शेल गैस के निष्कर्षण में ग्वार का कोई विकल्प नहीं है।

देश में प्रतिबन्धित खेसारी दाल की तीन नई प्रजातियों-

रतन, प्रतीक एवं महातेओरा की खेती किए जाने की अनुमति गत दिनों केन्द्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा प्रदान की गई है। इनमें डाई अमीनो प्रोपिऑनिक एसिड की मात्रा 0.07 0.10 प्रतिशत की सीमा में है। ध्यातव्य है कि वर्ष 1961 में खेसारी दाल के उत्पादन एवं बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उस समय चिकित्सा विशेषज्ञों एवं वैज्ञानिकों ने यह चेतावनी दी थी कि खेसारी दाल में मौजूदा ‘डाई अमीनो प्रोपिऑनिक एसिड’ (di amino-Pro-Pionic acid) के कारण ‘लैथिरिज्म’ (Lathyrism) का खतरा हो सकता है। ज्ञातव्य है कि लैथिरिज्म (Lathyrism) में शरीर के निचले भागों को लकवा मार जाता है तथा हाथ-पांव सुत्र पड़ जाते हैं।

 इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट फार सेमी एरिड ट्रॉपिक्स (ICRISAT) –

हैदराबाद के कृषि वैज्ञानिकों की एक अन्तर्राष्ट्रीय टीम ने चने के जीनोम को पढ़ने में सफलता प्राप्त की है। ज्ञातव्य है कि दालों के मामले में इससे पहले सोयाबीन और अरहर की जीनोम सीक्वेसिंग की जा चुकी है। पुनश्च भारत संसार में चने का सबसे बड़ा उत्पादक है, तथापि उसे अपनी आवश्यकता का लगभग 70 प्रतिशत आयात करना पड़ता है।

दलहनी फसलें मृदा उर्वरता तथा संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण फसलें हैं-

इन फसलों की जड़ों में राइजोबियम प्रजाति का जीवाणु सहजीवन यापन करता है, जो वायुमण्डल के नत्रजन को मृदा में संस्थापित करने में सक्षम होता है। कोबाल्ट, राइजोबियम द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए आवश्यक तत्व है। यह विटामिन B12 के संश्लेषण में भी सहायक होता है। दलहनी फसलें अपने गहरे जड़ों एवं वनस्पतिक वृद्धि के माध्यम से मृदा अपरदन को रोककर संरक्षी फसलों की भूमिका निभाती है।

दलहनी फसलोत्पादन में भारत की स्थिति –

भारत, विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता एवं आयातक है। ध्यातव्य है कि भारत में दालों का अत्यधिक उपभोग होने के कारण इनका अग्रणी उत्पादक होने के बावजूद आयात करना पड़ता है। अतः दालें भारत से सामान्यतः निर्यातित नहीं होती हैं। भारत सरकार, कृषि मंत्रालय के सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 में विश्व दलहन का लगभग 37% क्षेत्रफल तथा 28% उत्पादन भारत में होता है। वहीं भारत, विश्व के 14% दालों का आयात तथा 27% का उपभोग करता है। चना, मटर, अरहर, मंसूर, लोबिया, मूंग एवं कुल्थी का विश्व के कुल उत्पादन में 40-80% भाग भारत में पैदा होता है। किन्तु यहाँ आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार वर्ष 2020-21 में दाल का औसत उपज (उपज 8.92 कु./हे.) अन्य देशों के अपेक्षा बहुत कम है।

विश्व कृषि संगठन (F.A.O. रोम) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O. जिनेवा) के मानक के अनुसार निरामिष भोज्य पद्धति में प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 104 ग्राम दालों का उपभोग आवश्यक जाता है। परन्तु आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार भारत में दाल की उपलब्धता वर्ष 2019-20 में 43.8 ग्राम/व्यक्ति/दिन से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 45 ग्राम/व्यक्ति/दिन हो गई थी।

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के ‘विजन 2050’-

विजन 2050 के अनुसार देश में दालों की आवश्यकता वर्ष 2050 में 39 मिलियन टन होगी। वर्ष 2019-20 में दालों की खपत लगभग 20.7 मिलियन टन थी जबकि उत्पादन वर्ष 2020 21 में 25.7 मिलियन टन होने का अनुमान है। उक्त लक्ष्य तक पहुँचने हेतु दलहन विकास की वार्षिक दर कम से कम 2.14% आवश्यक है। अन्न तथा दालयुक्त भोजन का जैविक मूल्य (शरीर को तुल्य होता है।

देश में कुल उत्पादित दलहन का 66.14% रबी में तथा 33.85% खरीफ में होता है। कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के सांख्यिकी विभाग के अनुसार वर्ष 2016-17 में भारत में 81.1% दलहनी फसलें असिंचित अवस्था में तथा 18.9% सिंचित अवस्था में उगायी जाती है। बहार, अमर, आजाद, मालवीय विकास, पारस, मालवीय चमत्कार, आदि अरहर की प्रमुख किस्में हैं। अरहर की विकसित नवीनतम किस्में हैं पूसा 991, 992, MA-6, व GAUT 001E आदि। I.A.R.I. द्वारा विकसित अरहर की 120 दिन की अवधि वाली सुप्रसिद्ध किस्म अरहर पूसा-16 है। वर्ष 2011 में भारतीय कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अरहर दाल के जीनोम को डिकोड किया गया।

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दलहनी फसलों की महत्वपूर्ण किस्में-

  1. चना L.C.C.V. 96029, 96030, पूसा-226, K-850, सम्राट, पूसा चमत्कार, राधे, विशाल, उदय, पूसा-372 आदि।
  2. मटर– रचना, अपर्णा, (पत्तीविहीन प्रजाति) सपना, उत्तरा, पूसा प्रगति (सब्जी) आदि।
  3. मंसूर – मलिका, प्रिया, पूसा वैभव, गरिमा पन्त एल 406 anfal
  4. मूंग – बंसत कालीन पूसा बोल्ड-1, पंत-2, PS-16, पूसा-9531, T.44, पंत – M-1,2,3, मोती, पूसा-105 आदि ।
  5. उर्द वरदान– T-9, 65, नरेन्द्र U-1 आदि। 6. सोयाबीन : पूसा-9814, पूसा-9712 आदि ।
  • उन्नतिशील विधि से खेती करने पर चने की 25-30 कुन्तल / हेक्टेयर
  • अरहर की 20-25 कुन्तल/हेक्टेयर
  • मंसूर, लोबिया उर्द एवं मूंग की 10-15 कुन्तल / हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।
  • दलहनी फसलों के मृदा जनित रोगों के सुरक्षा हेतु बुआई के पूर्व बीजों को कैप्टान या बाविस्टान या वैसिकाल या थाइराम की 2.5 ग्राम मान्ना प्रति एक किलो ग्राम की दर से बीज शोधन किया जाता है।
  • फलीदार अथवा दलहनी फसलों में संतुलित उर्वरक का अनुपात (N.P.K.) 0.1 1, 1:2:2 अथवा 1 2 3 होता है।

सोयाबीन-

दलहनी फसलोत्पादन

सोयाबीन एक फसल है किन्तु इसकी उपयोगिता के कारण इसे तिलहनी वर्ग के फसलों में भी रखा जाता है। इसमें 20 22% तेल तथा 40-45% प्रोटीन पाया जाता है । इसकी खली में 50% प्रोटीन पाया जाता है, जो उच्च कोटि का पशु आहार होता है। विश्व में सोयाबीन के उत्पादन में ब्राजील का प्रथम, यू. एस. ए. का दूसरा, अर्जेंटीना का तीसरा, चीन का चौथा एवं भारत का पाँचवां (2020) स्थान है। यह एक अल्प प्रकाशपेक्षी पौधा है।

  • भारत में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर सोयाबीन की खेती मध्य प्रदेश में, 6.19 मिलियन हेक्टेयर (51.23%) पर की जाती है। (2019-20)
  • सोयाबीन से निर्मित दूध गाय के दूध के समान पौष्टिक होता है।
  • सोयाबीन के अलावा (इसे व्यापारिक फसल में रखा जाता है) देश में दलहनी फसलों के उत्पादन में क्रमशः तीन स्थान है चना, अरहर एवं उर्द का ।

भारत में दलहन फसलों के कम उत्पादन का कारण है-

जलवायु सम्बन्धी विपरीत स्थितियाँ, अधिक उपज देने वाली प्रजातियों का अभाव, उचित सस्य प्रबन्ध का अभाव, बुनियादी अनुसंधान सम्बन्धी कारक, दलहनी फसलों को गौड़ स्थान दिया जाना, अच्छी गुणवत्ता के बीजों का अभाव, पोस्ट होर्वेस्टिंग तकनीक का अभाव आदि । भारत में तीन दशकों से दलहन के क्षेत्रफल और उत्पादन में स्थिरता की प्रवृति विद्यमान है।

 

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