तारा | Star
- तारे ब्रह्मांड में पाए जाने वाले गैसों के चमकदार पिंड होते हैं।
- इनमें अपना प्रकाश पाया जाता है जिसका स्रोत नाभिकीय संलयन होता है।
- तारों में सर्वाधिक मात्रा हाइड्रोजन गैस (70%) की होती है। इसके बाद हीलियम गैस की मात्रा होती है।
- एक निश्चित आकृति में व्यवस्थित तारों के समूह को नक्षत्र कहा जाता है।
- तारों का रंग उनकी आयु का सूचक होता है।
- जो तारा जितना चमकीला होता है उसकी आयु उतनी ही कम होती है।
- पृथ्वी के ध्रुव पर 90 डिग्री का कोण बनाने वाला तारा ध्रुव (PoleStar) तारा कहलाता है।
- जब चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है तो इसे सूर्यग्रहण कहा जाता है। यह घटना केवल अमावस्या को ही होती है।
- खगोलीय दूरियों, यथा- तारों व नक्षत्रों के मध्य व अन्य लंबी दूरियों को प्रकाशवर्ष में मापा जाता है।
- एक प्रकाशवर्ष प्रकाश द्वारा निर्वात में एक वर्ष में तय की गई दूरी के बराबर है।
- हमारे अंतरिक्ष में कुल 89 तारामंडल हैं।
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तारों का जीवन चक्र
- तारे का जन्म नेबुला (जो कि गैस एवं धूल कणों के विशाल बादल होते हैं) से होता है।
- नेबुला में उपस्थित गैसें एवं धूल कण परस्पर गुरुत्वाकर्षण के कारण सकेंद्रित होकर तीव्र गति से केंद्र के परित घूमने लगते हैं।
- परिणामस्वरूप अत्यधिक दाब एवं ताप उत्पन्न होता है जिससे नाभिकीय संलयन की अभिक्रिया शुरू हो जाती है तथा तारा | Star का जन्म होता है।
- जब तारे के केंद्र में हाइड्रोजन समाप्त होने लगता है तो कोर में मौजूद पदार्थ संकुचित होता है जिससे तापमान एवं दबाव में अत्यधिक वृद्धि होती है।
- यह दबाव तारे के बाह्य आवरण पर लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव को कम कर देता है।
- परिणामस्वरूप तारे का बाह्य आवरण अत्यधिक फैल जाता है तथा संपूर्ण तारा अत्यधिक विशाल
- तथा लाल रंग का दिखाई देने लगता है, जिसे लाल दानव (Red Giant) कहते हैं।
- कम द्रव्यमान के तारे (जैसा कि सूर्य है) के कोर में मौजूद हीलियम, कार्बन में परिवर्तित होने लगता है तथा कोर सिकुड़कर छोटा हो जाता है।
- जबकि तारे का बाह्य आवरण बाहर की ओर धकेल दिया जाता है।
- तारे का कोर अपनी नाभिकीय ऊर्जा को खोकर श्वेत वामन (White Dwarf) में तथा श्वेत वामन धीरे-धीरे ठंडा होकर काला वामन (Black Dwarf) में बदल जाता है।
- ऐसे तारों के केंद्र में जिनका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के पाँच गुना या उससे भी अधिक होता है,
- जब हाइड्रोजन समाप्त हो जाती है तो वे लाल महादानव तारों में बदल जाते हैं।
- इन विशाल लाल महादानव तारों के कोर में इतना अधिक दबाव होता है कि-
- इलेक्ट्रॉन और प्रोट्रॉन मिलकर न्यूट्रॉन का निर्माण करते हैं तथा अति सघन कोर को जन्म देते हैं।
- सुपरनोवा विस्फोट के बाद भी ये कोर बचे रह जाते हैं और न्यूट्रॉन तारे के रूप में जाने जाते हैं।
- कुछ न्यूट्रॉन तारे तीव्र गति से घूर्णन करते हैं तथा X – किरणों एवं गामा किरणों का उत्सर्जन करते हैं।
- इन न्यूट्रॉन तारों को ‘पल्सर’ कहते हैं।
- यदि आरंभिक तारा अत्यधिक विशाल (सूर्य के द्रव्यमान अर्थात् Ms का लगभग 15 गुना से अधिक) हो तो यह न्यूट्रॉन तारा भी स्थिर नहीं रह पाता तथा ‘ब्लैक होल’ को जन्म देता है।
- सुपरनोवा विस्फोट के बाद यदि शेष बचे तारों (कोर) का द्रव्यमान 1.4M से 3M, के बीच हो तो ये न्यूट्रॉन तारे की अवस्था में रहेंगे परंतु यदि इनका द्रव्यमान 3M से अधिक हो तो ये न्यूट्रॉन तारे भी स्थायी नहीं रहेंगे।
- अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण कोर अपने ही गुरुत्व द्वारा निगल लिया जाता है तथा ब्लैक होल का जन्म होता है।
- 1.4M अर्थात् सूर्य के द्रव्यमान के लगभग 1.4 गुना द्रव्यमान को चंद्रशेखर सीमा कहते है।
- यह किसी भी स्थायी श्वेत बौने तारे के द्रव्यमान की अधिकतम संभावित सीमा है।