केंद्र तथा राज्यों के प्रशासनिक संबंध

  • संविधान के भाग-11 के अध्याय-2 का शीर्षक है- प्रशासनिक संबंध।
  • इसके अंतर्गत अनुच्छेद 256-263 शामिल हैं। इनमें अनुच्छेद 262-263 का ज़्यादा संबंध केंद्र-राज्य के बजाय विभिन्न राज्यों के आपसी संबंधों से है, जबकि शेष अनुच्छेद केंद्र और राज्य के प्रशासनिक संबंधों का वर्णन करते हैं।
  • सरकारिया आयोग (1983) व पुंछी आयोग (2007) तथा राजमन्नार समिति (1969) का संबंध केंद्र-राज्य संबंधों से है।

अंतर्राज्यीय परिषद्

सरकारिया आयोग (अध्यक्ष-आर. एस. सरकारिया तथा दो अन्य सदस्य-बी. शिवरमन तथा एस. आर. सेन) की सिफारिश पर मई 1990 में अंतर्राज्यीय परिषद् का गठन किया गया। संविधान के अनुच्छेद 263 में यह व्यवस्था है कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा अंतर्राज्यीय परिषद् की । स्थापना कर सकता है, जिसका मुख्य कार्य केंद्र राज्य के आपसी विवादों का समाधान करना है।

 

अन्य संवैधानिक प्रावधान

  • राज्य के निर्वाचन आयुक्त व राज्य के लोक सेवा आयोग के सदस्यों व अध्यक्ष की नियुक्ति राज्यपाल करता है, किंतु उन्हें पद से हटाने की शक्ति सिर्फ राष्ट्रपति के पास है।
  • अगर किसी राज्य का राज्यपाल संघ लोक सेवा आयोग से निवेदन करता है तो आयोग उस राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कार्य कर सकता है (अनुच्छेद 315)।

               अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद

संविधान का अनुच्छेद 262 यह प्रावधान करता है कि संसद विधि द्वारा अंतर्राज्यीय नदी के जल वितरण जैसे मुद्दों के न्याय निर्णयन के लिये विशेष अधिकरण गठित कर सकती है। संसद ऐसी व्यवस्था भी कर सकती है, जिससे न तो सर्वोच्च, न ही उच्च न्यायालय ऐसे विवाद में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सके।

राज्यों की कराधान शक्ति पर नियंत्रण

  • राज्य सूची के विषयों पर विधि बनाने की शक्ति राज्यों को देने के बावजूद संविधान उन पर कुछ नियंत्रण लगाता है, जिससे केंद्र-राज्य संबंधों तथा विभिन्न राज्यों के आपसी संबंधों में तनाव की स्थिति उत्पन्न न हो। संविधान के अनुच्छेद 276, 286, 287 तथा 288 में ऐसे नियंत्रण लगाए गए हैं।

केंद्र तथा राज्यों की कराधान शक्तियाँ

संघ सूची के कर इसमें ऐसे विषय दिये गए हैं जिन पर संसद विधि बनाकर कर लगा सकती है।

विषय-कृषि आय से भिन्न आय पर कर, सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क (भारत में निर्मित तंबाकू, एल्कोहलिक लिकर आदि), निगम कर, सीमा कर, समाचार पत्रों में प्रकाशित विज्ञापनों तथा क्रय-विक्रय पर कर, सेवा कर आदि शामिल हैं।

राज्य सूची के कर इनमें ऐसे विषय हैं, जिन पर राज्य के विधानमंडल कर लगा सकते हैं।

विषय- भू-राजस्व का निर्धारण और संग्रहण, कृषि आय पर कर, कृषि भूमि के संबंध में संपदा शुल्क, भूमि तथा भवनों पर कर, पथ कर, विद्युत पर कर, विलासितापूर्ण वस्तुओं पर कर आदि शामिल हैं।

समवर्ती सूची के कर

 

 

 

समवर्ती सूची में करों से संबंधित सिर्फ तीन प्रविष्टियाँ हैं

मशीनी वाहनों पर कर।

न्यायिक स्टांपों से भिन्न स्टांप शुल्क।

उपर्युक्त विषयों से संबंधित फीसें, किंतु इनमें किसी न्यायालय में ली जाने वाली फीसें शामिल नहीं हैं।

अवशिष्ट शक्तियाँ हमारे संविधान द्वारा अवशिष्ट शक्तियाँ संसद को दी गई हैं और यह शक्ति करों के अधिरोपण के विषय पर भी लागू होती हैं।

उपहार कर, संपदा कर, व्यय कर इत्यादि।

पहले सेवा कर भी इसमें शामिल था, किंतु 88वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा उसे संघ सूची में शामिल किया गया।

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कर राजस्व का वितरण

केंद्र द्वारा लगाए जाने वाले, किंतु राज्यों द्वारा एकत्रित तथा प्रयुक्त किये जाने वाले करों की चर्चा अनुच्छेद-268 में की गई है। वर्तमान में इसमें दो करों को शामिल किया गया है

  • संघ सूची में वर्णित स्टांप शुल्क
  • संघ सूची में वर्णित औषधियों तथा प्रसाधन उत्पादों पर लिया जाने वाला उत्पाद शुल्क।

केंद्र द्वारा लगाए जाने वाले, केंद्र तथा राज्यों द्वारा एकत्रित तथा प्रयुक्त किये जाने वाले करों की चर्चा अनुच्छेद 268क में की गई है। इसमें सिर्फ सेवा कर शामिल है।

केंद्र द्वारा लगाए जाने तथा एकत्र किये जाने, किंतु राज्यों को सौंपे जाने वाले करों की चर्चा अनुच्छेद-269 में की गई है। वर्तमान में इस सूची में दो कर शामिल हैं

  • समाचार पत्रों को छोड़कर शेष वस्तुओं के अंतर-राज्य व्यापार या वाणिज्य के दौरान होने वाले क्रय-विक्रय पर कर
  • माल/सामान के अंतर-राज्य पारेषण पर कर
सर्वप्रथम 2003 में अप्रत्यक्ष कर पर गठित केलकर टास्क फोर्स ने वैट (VAT) के सिद्धांत पर आधारित एक राष्ट्रव्यापी ‘वस्तु एवं सेवा कर’ का सुझाव दिया था। विभिन्न चुनौतियों के बाद दिसंबर 2014 में लोकसभा में 122वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में इसे पेश किया गया तथा मई 2015 को पारित कर दिया गया। विभिन्न राजनैतिक दलों के मध्य आम सहमति बनने के पश्चात् अगस्त 2016 में इसे राज्यसभा के द्वारा भी पारित कर दिया गया। चूँकि यह मामला देश के संघीय ढाँचे से संबंधित है, इसलिये अनुच्छेद 368) के अनुसार राज्यसभा से पास होने के बाद इसे कम-से-कम आधी विधानसभाओं अनुमोदित होने की आवश्यकता थी। आवश्यक विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन मिलने के पश्चात् इसे राष्ट्रपति की भी अनुमति प्राप्त हो गई तथा यह 101 वें संविधान संशोधन अधिनियम के रूप में अधिसूचित हो गया। इसके तहत संशोधित संविधान अनुच्छेद 279क अनुसार जीएसटी काउंसिल का भी गठन हो चुका है। जीएसटी कर प्रणाली 1 जुलाई, 2017 से लागू हो गई है।

 

  • केंद्र द्वारा लगाए जाने तथा एकत्र किये जाने वाले, किंतु केंद्र तथा राज्यों में बाँटे जाने वाले करों की चर्चा अनुच्छेद-270 में की गई है।
  • नई व्यवस्था के अनुसार कुछ अपवादों (अनुच्छेद 268, 268क व 269 में निर्दिष्ट सभी कर, अनुच्छेद 271 के तहत किसी कर या शुल्क पर लगाए जाने वाले अधिभार तथा संसद की किसी विधि द्वारा किसी विशेष प्रयोजन के लिये अधिरोपित कोई उपकर) को छोड़कर संघ सूची के सभी कर केंद्र व राज्यों में बाँट दिये जाते हैं।
  • अनुच्छेद-271 के अनुसार संसद अनुच्छेद 269 तथा 270 में निर्दिष्ट करों में से किसी या किन्हीं पर केंद्र सरकार के प्रयोजनों के लिये अधिभार लगा सकेगी तथा ऐसे अधिभारों की संपूर्ण प्राप्तियाँ भारत की संचित निधि का हिस्सा बनेंगी। राज्यों को अधिभार की प्राप्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलता।

 

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