ऊतक (Tissue)

ऊतक

  • ‘ऊतक’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ‘बिचट’ ने किया था।
  • ऊतक कोशिकाओं का ऐसा समूह होता है जिसमें कोशिकाओं की उत्पत्ति, संरचना तथा कार्य एक समान होते हैं।
  • पौधों के अधिकाश ऊतक यात्रिक सहारा देने वाले होते हैं जिनमें अधिकांश मृत होते हैं।
  • इसके विपरीत जंतुओं के अधिकाश ऊतक (Tissue) जीवित होते हैं।

पादप ऊतक (Plant Tissue)

  • ऊतकों की विभाजन क्षमता के आधार पर पादप ऊतकों को दो प्रमुख वर्गों में रखा गया है.
  • विभज्योतक ऊतक (Meristematic Tissue) एवं स्थायी ऊतक (Permanent Tissue) |

विभज्योतक ऊतक (Meristematic Tissue)

  • इनका मुख्य कार्य कोशिका विभाजन द्वारा निरंतर नई कोशिकाओं का निर्माण करना है।
  • कोशिकाएँ विभाजित होकर पौधों की लंबाई और मोटाई को बढ़ाने में सहायक होती हैं।
  • पौधों की जड़ एवं तने के शीर्ष भाग पर शीर्षस्थ विभज्योतक ऊतक (Apical Meristematic Tissue) एवं पार्श्व भाग में पार्श्वस्थ विभज्योतक ऊतक (Lateral Meristematic Tissue) उपस्थित होता है।
  • पत्तियों के आधार में अंतर्वशी विभज्योतक ऊतक (Intercalary Meristematic Tissue) पाए जाते हैं जो स्थायी ऊतक (Tissue) के बीच-बीच में उपस्थित होते हैं। इनके प्रमुख लक्षण निम्न हैं
  • विभज्योतक की कोशिकाएँ अधिक क्रियाशील होती है तथा इसकी कोशिका भित्ति पतली होती है।
  • ये आपस में सघनता से जुड़ी रहती हैं, इसलिये इनमें अंतकोशिकीय स्थान नहीं होता है।
  • इसमें एक स्पष्ट केंद्रक और सघन एवं पर्याप्त कोशिका द्रव्य पाया जाता है।

स्थायी ऊतक (Permanent Tissue)

  • स्थायी ऊतक विभज्योतक ऊतकों से बनते है एवं इनमें विभाजन की क्षमता समाप्त हो जाती हैं।
  • स्थायी ऊतकों का एक निश्चित आकार होता है।
  • ये कोशिकाएँ जीवित या मृत होती हैं।
  • कोशिका का आकार अपेक्षाकृत बड़ा होता है।
  • कोशिका भित्ति पतली या मोटी ही सकती है।
  • इसमें रसधानी युक्त कोशिका द्रव्य होता है।
  • स्थायी ऊतक को मुख्यतः दो भागों सरल ऊतक एवं जटिल ऊतक में विभाजित किया गया है।

सरल ऊतक (Simple Tissue)

  • ये वे ऊतक (Tissue) है जो एक समान कार्य करते हैं।
  • समान प्रकार की कोशिकाओं से निर्मित होने, समान उद्भव एवं समान कार्य करने के कारण ये सरल ऊतक कहलाते हैं।
  • इसके निम्न प्रकार है

मृदु उत्तक (Parenchyma)

  • पौधों का संरक्षण करता है एवं पत्तियों में भोजन निर्माण करता है।
  • साथ ही उत्सर्जित पदार्थों यथा गोंद, रेजिन टेनिन आदि को भी सचित करता है।

स्थूलकोण ऊतक (Collenchyma)

  • पौधों को यांत्रिक सहायता देने के साथ-साथ हरित लवक की उपस्थिति होने पर भोजन निर्माण भी करता है।

दृढ़ ऊतक (Selerenchyma)

  • रेशेदार पौधों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  • पौधों को यांत्रिक सहारा देता है।
  • पौधों के आंतरिक भागों के साथ-साथ वाह्य परतों में भी रक्षात्मक ऊतक के रूप में कार्य करता है।

जटिल ऊतक (Complex Tissue)

  • जटिल ऊतक एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं के बने होते हैं और ये सभी एक साथ मिलकर एक इकाई के रूप में कार्य करते हैं।
  • ये जल, खनिज एवं तैयार भोजन को पौधों के विभिन्न भागों तक पहुँचाने का कार्य करते हैं।
  • ये दो प्रकार के होते हैं- 1. जाइलम 2. फ्लोएम।
  • जाइलम तथा फ्लोएम को संवहन ऊतक (Vascular Tissue) भी कहते हैं।

जाइलम (Xylem)

  • ये पौधों को यांत्रिक सहारा देते हैं।
  • ये पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवणों को पौधों के विभिन्न भागों तक पहुँचाते हैं।
  • इन्हें जल संवहन ऊतक भी कहते हैं।

फ्लोएम (Phloeom)

  • ये जीवित तक होते हैं जो भोजन को पत्तियों से पौधों के अन्य भागों तक पहुँचाते हैं।
  • यह वृक्ष की छाल की आंतरिक परत है।
  • यदि किसी वृक्ष का फ्लोएम विग्रस्त हो जाए तो पत्तियों द्वारा निर्मित पोषक तत्व जड़ो तक नहीं पहुंच पाता और वृछ धीरे-धीरे सूखा जाता है।

ऊतक तंत्र

  • जब एक या एक से अधिक ऊतक मिलकर किसी कार्य को संपन्न करते हैं तो कों के इस समूह को उतक तंत्र कहते हैं।
  • पौधों में तीन प्रकार के तंत्र पाए जाते हैं
    • बाहा त्वचीय ऊतक का कार्य: सुरक्षा प्रदान करना एवं जल की हानि को रोकना।
    • भरण ऊतक का कार्य: प्रकाश संश्लेषण करना, भोजन एकत्र करना,तथा सुरक्षा एवं सहायता प्रदान करना।
    • संवहन ऊतक का कार्य: जल, खनिज लवण तथा भोजन को पौधों के विभिन्न भागों तक पहुँचाने का कार्य करना।
           वार्षिक वलय (Annual Rings)

विभिन्न ऋतुओं में मौसम में परिवर्तन के कारण कैम्ब्रियम की सक्रियता में भी परिवर्तन होता है। जिसके कारण स्पष्ट वार्षिक वलय का निर्माण होता है। ये वार्षिक वलय एक वर्ष की वृद्धि को प्रदर्शित करते हैं। जिसकी गिनती कर वृक्ष की अवस्था की जानकारी प्राप्त की जाती है।

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          द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth)

अधिकांश द्विबीजपत्रियों में एधा (Cambium) एवं कॉर्क कैम्बियम | (Cork Cambium) की क्रियाशीलता के कारण स्तंभ (तना) एवं जड़ों की मोटाई में वृद्धि हो जाती है, जो द्वितीयक वृद्धि कहलाती है।

जंतु ऊतक (Animal Tissue)

  • सभी बहुकोशकीय प्राणियों में चार प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं

उपकला ऊतक (Epithelial Tissue)

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  • उपकला ऊतक का कार्य शरीर को बाह्य आवरण या रक्षा प्रदान करना, साथ ही ग्रवण या उत्सर्जन, संवेदन तथा अवशोषण की क्रिया पूर्ण करना है।
  • यह शरीर के कुछ आंतरिक अंगों को ढकने का कार्य करता है।
  • एपीथिलियम ऊतकों को दो मुख्य वर्गों में बाँटा गया है कवरिंग एपीथिलियम (Covering Epithelium) एवं ग्लैंडुलर एपीथिलियम (Glandular Epithelium)।
  • ग्लैंडुलर एपीथिलियम ऊतक विशेष प्रकार के ऊतक होते हैं जो ग्रंथि (Glands) का निर्माण करते है।
  • कवरिंग एपीथिलियम को दो भागों में बाँटा गया है- सरल (Simple) एवं संयुक्त (Compound)।
  • सरल एपिथीलियम ऊतक 4 प्रकार के होते हैं

शल्की एपिथीलियम (Squamous Epithelium): ये त्वचा की बाहरी परत पर पाए जाते हैं एवं जिहवा, ग्रासनली, आहारनाल के स्तर बनाते हैं।

स्तंभाकार एपिथीलियम (Columnar Epithelium): इनका कार्य अवशोषण एवं स्रवण के अतिरिक्त अंगों को यांत्रिक सहारा प्रदान करना भी है।

घनाकार एपिथीलियम (Cuboidal Epithelium): ये लार ग्रंथि,स्वेद ग्रंथि (Swear Gland), वृक्क नलिकाओं में पाए जाते हैं।

रोमक / पक्ष्माभी एपिथीलियम (Ciliated Epithelium): इनकी मुक्त सतह पर रोम (Cilia) पाए जाते हैं। ये अंडवाहिनी, श्वासनली तथा मुख गुहा में पाए जाते हैं।

संयोजी ऊतक (Connective Tissue)

  • यह ऊतक शरीर के सभी ऊतकों तथा अंगों को आपस में जोड़ने, अंगों तथा शरीर को आकार प्रदान करने तथा उसे बनाए रखने का कार्य करता है।
  • रक्त एक प्रकार का संयोजी ऊतक है। इन ऊतकों की उत्पत्ति भ्रूण के मीसोडर्म से होती है।
  • शरीर में ये ऊतक सबसे अधिक पाए जाते हैं।
  • ये मुख्यतः तीन   प्रकार के होते हैं- A. वास्तविक संयोजी ऊतक (Connective Tissue Proper) B. कंकाल ऊतक (Skeletal Tissue), C. तरल ऊतक (Fluid Tissue)

वास्तविक संयोजी ऊतक (Connective Tissue Proper)

  • ‘वास्तविक संयोजी ऊतक’ के अंतर्गत निम्नलिखित आते हैं
एरिओलर ऊतक (Areolar Tissue)
  • इन्हें लचीले (Loose) संयोजी ऊतक (Tissue) भी कहते हैं।
  • ये विभिन्न ऊतकों को जोड़ने का कार्य करते हैं।
  • इनमें तीन प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं
    • फाइब्रोब्लास्ट (Fibroblast)
    • मास्ट (Mast)
    • मैक्रोफेजेज (Macrophages)
  • फाइब्रोब्लास्ट कोशिकाएँ कोलेजन (Collagen) एवं इलास्टिन (Elastin) तथा फाइब्रोनेक्टिन प्रोटीन का निर्माण करती हैं।
  • मास्ट कोशिकाएँ हिस्टामिन (Histamin), हिपैरिन (Heparin) तथा सेरोटोनिन (Serotonin) नामक प्रोटीन स्रावित करती हैं।
  • मैक्रोफेजेज सूक्ष्मजीवों एवं विजातीय कणों को नष्ट करने का कार्य करता है।
वसा संयोजी ऊतक (Adipose Tissue)
  • यह त्वचा के नीचे एवं किडनी के चारों तरफ वसा कोशिकाओं के रूप में पाया जाता है।
  • ये वसा का संश्लेषण, संग्रहण एवं उपापचय करते हैं।
  • यह ध्रुवीय क्षेत्रों में रहने वाले स्तनधारियों को ताप-क्षय से बचाता है।
श्वेत ऊतक (White Tissue)
  • यह विशेषीकृत संयोजी ऊतक है। कपाल हड्डियों (Skull Bones) के बीच इनकी उपस्थिति उन्हें अचल बनाती है।

टैंडन (Tendon)

  • यह घना, मजबूत तंतुमय ऊतक है, जो मांसपेशियों को अस्थियों अथवा दूसरी मांसपेशियों से जोड़ता है।

लिगामेंट (Ligament)

  • यह एक घना, तंतुमय (Fibrous) संयोजी ऊतक है।
  • ये अस्थियों के जोड़ों (joints) को जोड़ने का कार्य करते हैं।
  • अस्थियों को जोड़ों से जोड़ने के कारण ही मनुष्य अपनी गर्दन, उँगलियों एवं पैरों को आसानी से घुमा पाता है।

कंकाल ऊतक (Skeletal Tissue)

  • यह शरीर को तथा अन्य ऊतकों को सहारा प्रदान कर उन्हें मजबूती से जोड़ता है।
  • यह शरीर का अंतः कंकाल (Endoskeleton) बनाता है, जो कशेरुकी जंतुओं का विशेष लक्षण है।
  • यह कोमल अंगों, जैसे- मस्तिष्क आदि की रक्षा करता है।
  • ये दो प्रकार के होते हैं- उपास्थि (Cartilage) ऊतक तथा अस्थि (Bone) ऊतक

उपास्थि ऊतक (Curtilaginous Tissue)

  • यह एक ठोस परंतु अर्द्ध-कठोर एवं लचीला संयोजी ऊतक है।
  • इसके मैट्रिक्स (Matrix) की रचना कोंड्रिन (Chondrin) नामक प्रोटीन से होती है।
  • इसकी कोशिकाओं को कोड़ियोसाइट्स (Chondriocytes) कहते हैं जो एक छोटे स्थान लैकुना (Lacunae) में अवस्थित होती है।

अस्थि ऊतक (Bone Tissue)

  • यह एक ठोस दृढ़ एवं मजबूत संयोजी ऊतक है।
  • इसका मैट्रिक्स ओसेन (Ossein) नामक प्रोटीन का बना होता है।
  • अस्थि का मैट्रिक्स फॉस्फेट, सल्फेट, कार्बोनेट एवं कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के फ्लोराइड लवणों से समृद्ध होता है।
  • इसकी कोशिकाओं को ऑस्टियोसाइट (Osteocyte) कहते हैं।
  • लंबी एवं मोटी अस्थियों के बीच में पाई जाने वाली खोखली गुहा (Hollow Cavities) या स्थान, मज्जा गुहा (Marrow Cavities) कहलाती है।
  • एडिपोज ऊतकों से भरी मज्जा गुहा ‘अस्थि मज्जा’ (Bone Marrow) कहलाती है।
  • लाल अस्थि मज्जा (Red Bone Marrow) अस्थियों के सिरों के पास पाई जाती है तथा अस्थियों के मध्य में पीली अस्थि मज्जा (Yellow Bone Marrow) पाई जाती है।
  • लाल अस्थि मज्जा द्वारा लाल रक्त कणिकाओं तथा पीली अस्थि मज्जा द्वारा श्वेत रक्त कणिकाओं का निर्माण होता है।

तरल ऊतक (Fluid Tissue)

  • रक्त या रुधिर एक तरल संयोजी ऊतक है।
  • इनकी कोशिकाएँ प्लाज्मा (Plasma) नामक द्रव में स्वतंत्र रूप से तैरती रहती हैं।
  • ये कोशिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं
    • लाल रक्त कोशिकाएँ (Erythrocytes)
    • श्वेत रक्त कोशिकाएं (Leukocytes)
    • प्लेटलेट्स (Platelets)

पेशी ऊतक (Muscular Tissue)

  • प्रचालन तथा विभिन्न प्रकार की गतियों के लिये पेशी ऊतकों की आवश्यकता होती है।
  • गतिशीलता (Mobility) एवं संकुचनशीलता (Contractility) जीवों के शरीर के महत्त्वपूर्ण लक्षण होते हैं।
  • इस गतिशीलता एवं संकुचनशीलता में मायोसिन (Myosin) तथा ऐक्टिन (Actin) नामक संकुचनशील प्रोटीन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • पेशियाँ मानव शरीर का औसतन 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत भाग बनाती हैं।
  • मानव शरीर में सबसे मजबूत मांसपेशी जबड़े की होती हैं।
  • पेशी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं
    • अरेखित या अनैच्छिक (Unstriped or Involuntary Muscles)
    • रेखित या ऐच्छिक (Striped or Voluntary Muscles)
    • हृदपेशी (Cardiac or Heart Muscles)
अरेखित या अनैच्छिक पेशी
  • अरेखित पेशी का संकुचन जंतु के इच्छाधीन नहीं होता है, इसलिये इन्हें अनैच्छिक पेशी कहते हैं |
  • ये आइरिस (Iris), वृषण (Testes). मूत्राशय तथा रक्तवाहिनियों में पाई जाती है।
  • आहारनाल में भोजन का प्रवाह इसी पेशी के संकुचन एवं प्रसार के कारण होता है।
रेखित या ऐच्छिक पेशी
  • रेखित पेशी जंतु के कंकाल से संबद्ध रहती है और इनमें ऐच्छिक गति होती है, जिस कारण इन्हें कंकाल पेशी (Skeletal Muscle ) या ऐच्छिक पेशी कहते हैं।
  • इसके कोशिका द्रव्य को साकर्कोप्लाज्म (Sarcoplasm) कहते हैं जिसमें अनेक मायोफाइब्रिल (Myofibril) होते हैं।
  • यह बाँह (Arm), पैर, गर्दन आदि अंगों में पाई जाती है।
  • ये पेशियाँ तंत्रिका द्वारा उत्तेजित होती हैं।
हृदय पेशी
  • हृदय पेशी हृदय की भित्ति बनाती है।
  • इसमें अनुप्रस्थ धारियाँ पाई जाती है परंतु ये स्वभावत: अनैच्छिक (Involuntary) होती हैं।
  • इनमें संकुचन एवं प्रसरण होता रहता है।
  • इनके संकुचन का नियंत्रण तंत्रिका तंत्र के द्वारा न होकर स्वयं पेशियों के नियंत्रण द्वारा होता है।

तंत्रिका ऊतक (Neural Tissue)

  • तंत्रिका ऊतक एक विशेष प्रकार की कोशिका से बने होते हैं जिन्हें तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन (Neuron) कहते हैं।
  • मस्तिष्क, मेरुरज्जु और तंत्रिकाएँ सभी तंत्रिका ऊतकों की बनी होती हैं।
  • शरीर के समस्त अंगों व कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना इनकी विशेषता है।
  • तंत्रिका कोशिका संवेदना को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में भेजने का कार्य करती है।
  • इस न्यूरॉन में एक लंबा प्रवर्ध होता है जिसे एक्सॉन (Axon) कहते है।
  • न्यूरॉन में छोटी शाखा वाले अनेक प्रवर्ध भी होते हैं जिन्हें डेंड्राइट्स (Dendrites) कहते हैं।
  • एक तंत्रिका कोशिका मीटर तक लंबी हो सकती है। तंत्रिका ऊतक से मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु बनते हैं।
  • एक न्यूरॉन के एक्सॉन के अंतिम छोर की शाखाएँ दूसरे न्यूरॉन के डेंड्राइट्स से जुड़कर सिनैप्स (Synapse) बनाती हैं।

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