प्रकाश का विद्युत प्रभाव (Photoelectric Effect)
- विद्युत चुंबकीय तरंगों का निर्माण छोटे-छोटे कणों से मिलकर होता है, जिन्हें ‘फोटॉन’ कहते हैं।
- ये फोटॉन ऊर्जा के बंडल होते हैं। जब किसी धातु पर विद्युत चुंबकीय किरणें (प्रकाश किरणें, एक्स किरणें, गामा किरणें आदि) गिरती हैं तो विद्युत चुंबकीय तरंगों के फोटॉनों में निहित ऊर्जा का स्थानांतरण धातु के इलेक्ट्रॉनों में हो जाता है।
- इस ऊर्जा से उत्तेजित होकर धातु की सतह से इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन होने लगता है।
फोटॉन (Photon)
- फोटॉन ऊर्जा के बंडल (Packet of Energy) होते हैं। इन फोटॉनों की ऊर्जा-hy होती है।
- जहाँ पर ” प्लांक स्थिरांक (constant) और आवृत्ति (frequency) होती है।
- h – प्लांक नियतांक मान 6.63 x 10 जूल सेकेंड होता है।
प्रकाश विद्युत प्रभाव नियम
- धातु की सतह से उत्सर्जित होने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या, उस धातु पर गिरने वाले प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।
- उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा, धातु पर गिरने वाले प्रकाश की आवृत्ति के अनुक्रमानुपाती होती है।
- धातु की सतह पर गिरने वाले प्रकाश की वह न्यूनतम आवृत्ति, जो किसी धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन करने के लिये आवश्यक हो, उसे ‘दहलीज आवृत्ति’ (Threshold frequency) कहते हैं।
कार्यफलन (Work function)
- इलेक्ट्रॉनों को धातु पृष्ठ से बाहर निकालने के लिये एक निश्चित न्यूनतम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- इस न्यूनतम ऊर्जा को धातु का ‘कार्य-फलन’ कहते हैं।
प्रकाश विद्युत प्रभाव की विस्तृत व्याख्या आइंस्टीन एवं मिलिकन ने की। प्रकाश विद्युत प्रभाव की सफल व्याख्या के लिये आइंस्टीन को वर्ष 1921 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
नोट: प्रकाश-विद्युत सेल, प्रकाश विद्युत प्रभाव पर ही आधारित होते हैं।
- ऐसे सेल प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।
- इनका प्रयोग सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन में किया जाता है
- जैसे-कृत्रिम उपग्रहों में विद्युत ऊर्जा के लिये, सौर पैनल द्वारा।
डायोड वाल्व (Diode Valve)
- इसका उपयोग प्रत्यावर्ती धारा (A.C.) को दिष्ट धारा (D.C.) में बदलने के लिये करते हैं।
- सरल शब्दों में कहें तो डायोड वाल्व का उपयोग दिष्टकारी की तरह होता है।
ट्रायोड वाल्व (Triode Valve)
- यह एक इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धक वैक्यूम ट्यूब (Electronic Amplifying Vacuum Tube) होता है।
- इसका उपयोग प्रवर्धक (Amplifier), दोलित ( oscillator), प्रेषी (Transmitter) एवं संसूचक (Detector) की तरह होता है।
ट्रांजिस्टर (Transister)
- ट्रांजिस्टर एक अर्द्धचालक युक्ति (Semi-conductor Device) है, जिसका उपयोग प्रवर्धक (Amplifier) की तरह होता है।
- अभियांत्रिकी में इन ट्रांजिस्टरों का उपयोग प्रवर्धक, स्विच, रेगुलेटर, ऑसिलेटर तथा सिगनल मॉडुलेटर की तरह होता है।
- ट्रांजिस्टर दो तरह के होते हैं प्रथम n-p-n प्रकार के ट्रांजिस्टर और द्वितीय p-n-p प्रकार के ट्रांजिस्टर।
- पहले ट्रांजिस्टर की जगह पर ट्रायोड का उपयोग किया जाता था. परंतु ट्रांजिस्टर ट्रायोड की तुलना में सस्ते, हल्के तथा आकार में छोटे होते हैं।
- साथ ही ट्रांजिस्टर के उपयोग से कम अपशिष्ट ऊष्मा पैदा होती है।
रडार (Radio Detection and Ranging)
- रडार एक ऐसी युक्ति है, जिसकी सहायता से लक्ष्यों का पता लगाया जाता है।
- रडार से प्रेषित तरंगें विद्युत चुंबकीय रेडियो तरंगें होती हैं, जो लक्ष्यों की ओर प्रेषित की जाती है। ल
- क्ष्य से टकराकर ये तरंगें वापस रडार युक्ति द्वारा ग्रहण की जाती है और लक्ष्य की स्थिति की सटीकतापूर्ण गणना कर ली जाती है।
रडार का उपयोग
- समुद्री जहाजों, वायुयानों की स्थिति का पता करने में।
- मौसम संबंधी सूचनाओं को एकत्रण में
- प्रक्षेपास्त्रों (Missile) का पता लगाने में।
- जैविक अनुसंधानों में- पक्षियों एवं कीड़ों के स्थानांतरण का पता लगाने में।
लेज़र-विकिरण के प्रेरित उत्सर्जन से प्रकाश तरंगों का प्रवर्धन
लेज़र (LASER-Light Amplification by Stimulated Emission of Radiation) तरंगों की आवृत्ति समान होने के साथ-साथ सभी तरंगों की कला भी स्थिर होती है।
लेजर का उपयोग
- चिकित्सा के क्षेत्र में विभिन्न व्याधियों के इलाज के लिये लेज़र का उपयोग किया जाता है।
- वेल्डिंग (Welding) और कटिंग में, संचार में, बारकोड स्कैनर में, लेसर प्रकाश के उपयोग से त्रिविमीय चित्र खींचे जा सकते हैं।
- होलोग्राफी तकनीक लेजर प्रकाश पर ही आधारित है।
- दूरी और समय की माप में।
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मेसर-विकिरण के उद्दीप्त
उत्सर्जन द्वारा सूक्ष्म तरंगों का प्रवर्धन
- मेसर (MASER Microwave Amplification by stimulated Emission of Radiation) की कार्यप्रणाली भी उन्हीं सिद्धांतों पर आधारित है, जिस पर लेसर की, परंतु जहाँ लेसर में प्रकाश किरणों का उत्सर्जन होता है, वहीं मेसर में सूक्ष्म तरंगों का उत्सर्जन होता है।
मेसर का उपयोग
- रेडियो टेलीस्कोप
- सैटेलाइट संचार में
रेडियो-सक्रियता (Radioactivity)
- ऐसे तत्त्व जो स्वतः विघटित होकर विकिरण उत्सर्जित करते हैं,
- ‘रेडियो सक्रिय तत्त्व’ कहलाते हैं। रेडियो सक्रिय तत्त्वों की इस परिघटना को ‘रेडियो सक्रियता’ कहते हैं।
- रेडियो सक्रियता की खोज का श्रेय फ्राँसीसी वैज्ञानिक सर हेनरी बेकरेल को प्राप्त है।
- रेडियो सक्रिय तत्त्वों के उदाहरण: प्लूटोनियम (Pu), थोरियम (Th), यूरेनियम (U), रेडियम (Ra) इत्यादि।
- रेडियो-सक्रियता दो प्रकार की होती है
प्राकृतिक रेडियो-सक्रियता (Natural Radioactivity)
- कुछ तत्त्वों के परमाणु के नाभिक स्वतः विखंडित होकर रेडियो सक्रिय किरणों का उत्सर्जन करते रहते हैं।
- यह क्रिया निरंतर सक्रिय रहती है। इस क्रिया अथवा घटना को ‘रेडियो-सक्रियता’ कहते हैं।
कृत्रिम रेडियो-सक्रियता (Artificial Radioactivity)
- कृत्रिम रेडियो-सक्रियता का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसमें कोई तत्त्व किसी ज्ञात तत्त्व के ऐसे समस्थानिक में परिवर्तित हो जाता है, जो कि रेडियो सक्रिय है।
रेडियो सक्रिय किरणें (Radioactive Rays)
- रेडियो-सक्रिय पदार्थों से विघटन की प्रक्रिया के फलस्वरूप जो किरणें निकलती हैं, उन्हें ‘रेडियो-सक्रिय किरणें’ कहते हैं।
- रदरफोर्ड ने इन किरणों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया(α,β,γ)किरण
रेडियो आइसोटोप डेटिंग (Radio Isotope Dating)
- किसी रेडियो एक्टिव समस्थानिक की सहायता से किसी जैविक अवशेष, लकड़ी अथवा मृत पेड़ों की आयु ज्ञात करना रेडियो आइसोटोप डेटिंग कहलाता है।
उदाहरण
- कार्बन डेटिंग की सहायता से जैविक अवशेषों, मृत पेड़-पौधे आदि की जानकारी प्राप्त करते हैं।
- पृथ्वी पर उपस्थित पुरानी चट्टानें या पृथ्वी की जानकारी प्राप्त करने के लिये यूरेनियम डेटिंग का उपयोग किया जाता है।
- कम प्रभाव वाली व कम हानिकर रेडियो-सक्रिय किरणों का उपयोग फल, अनाज सब्जियों आदि के रोगाणुनाशन में भी किया जाता है।
- रेडियोएक्टिविटी की माप गीगर काउंटर द्वारा की जाती है।
नाभिकीय अभिक्रिया एवं नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Reactions and Nuclear Energy)
- नाभिकीय अभिक्रियाएँ दो तरह की होती हैं (क) नाभिकीय विखंडन (ख) नाभिकीय संलयन
नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission)
- इस प्रक्रिया में एक परमाणु नाभिक पर न्यूट्रानों की बमबारी कराकर विखंडित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होती है।
उदाहरण 92 U235 +0n1 → 56 Ba144+ Kr89 +30n1 + ऊर्जा
- नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया के उपरांत उत्सर्जित न्यूट्रॉन अन्य परमाणु नाभिकों को विखंडित करते हैं और यह प्रक्रिया एक श्रृंखला अभिक्रिया का रूप ले लेती है और अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा निर्मुक्त होती है। परमाणु बम नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया पर ही आधारित है।
नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion )
- नाभिकीय संलयन अभिक्रिया के अंतर्गत दो हल्के परमाणु नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक बड़ परमाणु नाभिक का निर्माण करते हैं।
- उदाहरण हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोग से हीलियम परमाणु का निर्मित होना
नोटः नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होने का मूल कारण द्रव्यमान क्षति है। जब परस्पर संयोग से अथवा विखंडन से किसी नाभिक का निर्माण होता है तो अभिक्रिया में भाग लेने वाले परमाणुओं तथा अभिक्रिया के उपरांत निर्मित परमाणु के द्रव्यमान में अंतर होता है। संक्षिप्त में द्रव्यमान की क्षति होती है और द्रव्यमान क्षति आइंस्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण E=∆mc2 (∆m = द्रव्यमान क्षति, c= प्रकाश का वेग = 3 x 108 m/sec) के अनुसार ऊर्जा में परिवर्तित होता है, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा निर्मुक्त होती है।
नाभिकीय संलयन अभिक्रिया के कुछ प्रमुख उदाहरण
- हाइड्रोजन बम
- तारों की ऊर्जा
नाभिकीय रिएक्टर (Nuclear Reactor)
नाभिकीय रिएक्टर एक ऐसा संयंत्र होता है, जिसकी सहायता से नाभिकीय अभिक्रिया नियंत्रित कर, निर्मुक्त ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक कार्यों के लिये किया जाता है। आजकल नाभिकीय रिएक्टरों का उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पादन के लिये किया जा रहा है।
नाभिकीय रिएक्टर के महत्त्वपूर्ण अवयव
कोर
- यह नाभिकीय रिएक्टर का मुख्य भाग होता है। नाभिकीय विखंडन की अभिक्रिया इसी भाग में होती है।
ईंधन (Fuel)
- नाभिकीय रिएक्टरों में ईंधन के तौर पर U235, Pu239 आदि का ईंधन के रूप में प्रयोग होता है।
- भारत द्वारा ऐसे रिएक्टर का विकास अंतिम दौर में है, जिसमें ईंधन के तौर पर थोरियम (Th) का उपयोग किया जाएगा। भारत थोरियम की प्रचुर उपलब्धता है। इसका विकास हो जाने से नाभिकीय ईंधन के लिये आयात पर निर्भरता कम होगी।
नियंत्रक छड़ें (Control rods)
- नियंत्रक छड़ों की सहायता से रिएक्टर में घटित होने वाली नाभिकीय प्रक्रिया की दर को नियंत्रित किया जाता है।
- ये नियंत्रक छड़ें बोरान व कैडमियम की होती हैं।
मंदक (Moderator)
- मंदकों की सहायता से न्यूट्रॉन की गति पर नियंत्रण रखा जाता है, जिससे वांछित परिणाम प्राप्त हो सकें।
- ग्रेफाइट व भारी जल (D2O) का उपयोग मंदक के तौर पर किया जाता है।
शीतलक (Coolant)
- अभिक्रिया के दौरान उत्सर्जित ऊष्मीय ऊर्जा के नकारात्मक प्रभावों को प्रभावहीन करने के लिये शीतलक का उपयोग किया जाता है।
- सामान्यतया भारी जल, द्रव सोडियम का उपयोग शीतलक के रूप में किया जाता है।
रक्षक आवरण (Shield)
- रिएक्टर का कोर एक स्टील अथवा कंक्रीट के एक आवरण से बंद रहता है, जिससे उत्सर्जित विकिरण एवं ऊष्मा का कोई नकारात्मक प्रभाव न उत्पन्न हो ।
नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग
- विद्युत ऊर्जा उत्पादन में।
- पनडुब्बी, युद्धपोत आदि के संचालन में।