आर्कमिडीज़ का सिद्धांत -Archimedes Principles
- जब किसी वस्तु को द्रव में पूर्णतः या आंशिक रूप से डुबोया जाता है तो उसके भार में आभासी कमी आ जाती है।
- वस्तु के भार में यह कमी वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होती है।
उत्प्लावन बल (Buoyant force)
- जब कोई वस्तु द्रव में डुबोई जाती है तो वस्तु के भार में कमी प्रतीत होती है।
- यह कमी द्रव द्वारा वस्तु पर लगाए जाने वाले एक बल के कारण प्रतीत होती है।
- द्रव द्वारा वस्तु पर लगाए जाने वाले इसी बल को ‘उत्प्लावन बल’ कहते उत्प्लावन बल का परिमाण द्रव के घनत्व पर निर्भर करता है।
प्लवन का नियम
- तैरने वाली वस्तु यदि संतुलन की अवस्था में है तो वह अपने भार के बराबर द्रव विस्थापित करती है।
- ठोस का गुरुत्व-केंद्र तथा हटाए गए द्रव का गुरुत्व-केंद्र दोनों एक ही उर्ध्वाधर रेखा में होना चाहिये।
घनत्व (Density)= द्रव्यमान/आयतन
इसका SI मात्रक किलोग्राम/मीटर’ होता है।
आपेक्षिक घनत्व (Relative Density)
आपेक्षिक घनत्व =वस्तु का घनत्व/4°C पर पानी का घनत्व
- जैसा कि सूत्र से स्पष्ट है। यह घनत्व का अनुपात है। अतः इसका कोई मात्रक नहीं है।
- आपेक्षिक घनत्व को हाइड्रोमीटर से मापते हैं।
- यदि जल में अशुद्धियाँ, लवण इत्यादि मिला दिया जाए तो इसका घनत्व बढ़ जाता है। यही कारण है कि समुद्र के जल का घनत्व शुद्ध जल से अधिक होता है।
- यदि विभिन्न घनत्व के द्रवों को मिलाया जाए तो अधिक घनत्व का द्रव नीचे तथा कम घनत्व का द्रव ऊपर रहेगा। जैसे मिट्टी के तेल को जल में डालने पर यह ऊपर तैरने लगता है।
- लोहे का घनत्व पारे से कम तथा जल से अधिक होने के कारण ही लोहे की कील पारे में तैरती है, जबकि पानी में डूब जाती है।
द्रव में डुबी हुई वस्तु अपने आयतन तथा तैरती हुई वस्तु अपने भार के बराबर द्रव को विस्थापित करती है।
ससंजक और आसंजक बल (Cohesive and Adhesive forces)
- एक ही पदार्थ के अणुओं के मध्य लगने वाले बल को ‘ससंजक बल’ (Cohesive force) तथा भिन्न-भिन्न पदार्थ के अणुओं के मध्य लगने वाले बल को ‘आसंजक बल’ (Adhesive force) कहते हैं।
- दो धातुओं को सोल्डर धातु की सहायता से जोड़ना आसंजक बलों के कारण ही संभव है।
- ठोस पदार्थों के अणुओं के बीच लगने वाला ससंजक बल सबसे अधिक तथा गैसीय पदार्थों के बीच लगने वाला ससंजक बल सबसे कम होता है।
पृष्ठ तनाव (Surface Tension)
- द्रव की सतह पर स्थित अणुओं पर ऊपर की ओर कोई बल नहीं लगता है,
- किंतु नीचे स्थित अणुओं द्वारा उन पर आकर्षण बल लगाया जाता है, जिससे पृष्ठ पर स्थित अणु एक तनाव महसूस करते हैं।
- इस तनाव के कारण द्रव पृष्ठ अपना क्षेत्रफल कम करने की कोशिश करता है। द्रव पृष्ठ पर लगने वाले इस तनाव को ‘पृष्ठ तनाव’ कहते हैं।
- दैनिक जीवन में पृष्ठ तनाव के कुछ उदाहरण –
- जल की बूँद का गोलाकार होने का कारण पृष्ठ तनाव ही है।
- कपड़े की सफाई के लिये प्रयुक्त साबुन व डिटर्जेंट जल पृष्ठ तनाव को कम कर देते हैं।
- छोटे-छोटे कीट (जैसे-मच्छर, वाटर स्ट्राइडर्स आदि) जल की सतह पर चलते हैं।
- इन कीटों का भार इतना नहीं होता है कि ये जल के पृष्ठ तनाव को प्रभावहीन कर पृष्ठ के अंदर प्रवेश करें।
- सुई (कम भार वाली) का जल की सतह पर तैरना ।
केशिकत्व (Capillarity)
- केशनली में द्रव के ऊपर चढ़ने अथवा नीचे उतरने की घटना को ‘केशिकत्व’ कहते हैं।
- केशनली को जल से भरे बर्तन में रखते हैं तो जल ऊपर की ओर चढ़ता है और पारे से भरे बर्तन में रखते हैं तो पारा नीचे की ओर खिसकता है।
दैनिक जीवन में केशिकत्व के उदाहरण
- लैंप की बत्ती में केरोसिन तेल का ऊपर की ओर चढ़ना।
- पेड़-पौधों के तनों, शाखाओं व अन्य अवयवों में जल का परिवहन
- वर्षा के बाद किसान अपने खेतों की जुताई इसलिये कर देते हैं, क्योंकि जुताई से खेत में बनी केशनलियाँ टूट जाती हैं और जल ऊपर नहीं आ पाता है, जिससे खेत में नमी बनी रहती है।
श्यानता (Viscosity)
- जब द्रव की विभिन्न परतों के बीच गति होती है तब उन परतों के बीच एक घर्षण बल कार्य करता है, जो परतों की आपेक्षिक गति का विरोध करता है।
- परतों के बीच लगने वाले इस बल को ‘श्यान बल’ कहते हैं तथा द्रव का वह गुण, जिसके चलते वह अपनी विभिन्न परतों के बीच होने वाली आपेक्षिक गति का विरोध करता है, उसे ‘श्यानता’ कहते हैं।
- ठोस पदार्थों में श्यानता का गुण नहीं पाया जाता है। जो द्रव जितना गाढ़ा होगा, उसकी परतों के मध्य उतनी ही अधिक श्यानता होगी।
- ताप बढ़ने पर द्रवों में श्यानता घटती है।
- गैसों में श्यानता होती है, किंतु बहुत कम मात्रा में।
सीमांत वेग (Terminal Velocity): जब कोई वस्तु गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में नीचे गिरती है तो आरंभ में उसका वेग बढ़ता है, परंतु कुछ समय के बाद वह एक नियत वेग से गति करने लगती है। इसी नियत वेग को ‘सीमांत वेग’ कहते हैं।
धारा रेखीय प्रवाहः द्रव का ऐसा प्रवाह, जिसमें द्रव का कोई कण उसी निश्चित बिंदु से गुजरता है, जिससे उससे पहले वाला कण गुजरा था। इसमें किसी निश्चित बिंदु पर कण की चाल व दिशा नियत बनी रहती है।
क्रांतिक वेग (Critical Velocity): वह निश्चित वेग, जिससे कम वेग होने पर द्रव का प्रवाह धारारेखीय होता है, परंतु अधिक होने पर धारारेखीय नहीं रह पाता ‘क्रांतिक वेग’ कहलाता है।
अविरतता का सिद्धांत (Principle of Continuity)
- यदि कोई आदर्श द्रव (आदर्श द्रव से आशय ऐसे द्रव से जो असंपीड्य तथा अश्यान हो) किसी नली से प्रवाहित हो रहा है तो द्रव के वेग (v) और नली के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) का गुणनफल एक नियतांक होता है।
A×V =नियतां
बरनौली प्रमेय (Bernoulli’s Theorem)
- यदि कोई आदर्श द्रव धारारेखीय प्रवाह से किसी नली से होकर प्रवाहित होता है तो मार्ग के प्रत्येक बिंदु पर दाब ऊर्जा, गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा का योग एक नियतांक होता है।
दाब ऊर्जा + गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा = नियतांक
बरनौली प्रमेय के दैनिक जीवन में उदाहरण
- जब प्लेटफार्म पर ट्रेन पहुँचती है तो प्लेटफार्म के किनारे पड़े पत्ते अथवा अन्य कागज के टुकड़े आदि उड़ने लगते हैं।
- ऐसा होने की वजह यह है कि जब ट्रेन प्लेटफार्म पर आती है तो वस्तु और गाड़ी के बीच दाब कम हो जाता है, जिससे वस्तुएँ गाड़ी की ओर खिंचाव महसूस करती हैं।
- तूफान के समय छत से टीन का उड़ जाना।
- समुद्र में पास-पास समानांतर चल रहे दो जलयानों का टकरा जाना।
- वायुयानों का उड़ पाना आदि।
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