आदिवासियों का स्वास्थ खबरों में क्यों हैं?
आदिवासियों का स्वास्थ चर्चा का विषय बना हुआ है, सरकार को राष्ट्रीय आदिवासी स्वास्थ मिशन चलाने का सुझाव दिया जा रहा है ,हाल ही में भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति चुनी गई है, इस वजह से यह और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, वैसे तो आदिवासी ज्यादातर मूलभूत सुविधाओं से वंचित है और जो सुविधाएं हैं भी वह भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है उनमें से एक स्वास्थ भी है। ऐसे में आदिवासियों का स्वास्थ एक बड़ी चुनौती है |
आदिवासी कौन होते हैं?
दुनिया भर में इस विषय को लेकर बहस की जा रही है, पर अभितक इसकी कोई सार्वभौमिक परिभाषा मौजूद नहीं है ,यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र के पास भी इसकी कोई परिभाषा मौजूद नहीं है, भारतीय संविधान में आदिवासी समुदाय का जिक्र अनुसूचित जनजाति के रूप में किया गया है ।
अनुच्छेद 342– अनुसूचित जनजाति को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि ऐसा समुदाय या समूह जिसे राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया जाता है।
जनजाति शब्द ऐसे समुदायों के लिए एक आधुनिक शब्द है जो किसी भी क्षेत्र के सबसे प्राचीनतम निवासियों में से एक है।
आदिवासियों की विशेषताएं–
ये लिखित पाठ पर आधारित किसी भी धर्म का पालन नहीं करते हैं,इनके पास कोई राज्य या राजनीतिक पद्धति नहीं होती है, इनमें वर्ग विभाजन का अभाव होता है, आदिवासी समूह सामाजिक ,आर्थिक, धार्मिक, या रक्त संबंधों के आधार पर आपस में जुड़े होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस–
प्रतिवर्ष 9 अगस्त को आदिवासी समुदाय के अधिकारों के रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी दिवस मनाया जाता है ,संयुक्त राष्ट्र के रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 30– 50 करोड़ आदिवासी लोग मौजूद है, इनके अधिकारों की रक्षा के लिए UNGA(United Nation General Assembly) ने 23 दिसंबर 1994 को प्रस्ताव अपनाया था, प्रस्ताव के आधार पर 1995 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी दिवस का आयोजन किया गया था, यह दिवस 9 अगस्त को इसलिए मनाया जाता है क्योंकि मानव अधिकारों के प्रचार और संरक्षण पर उप– आयोग की स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक आयोजित की गई थी ।
आदिवासी दिवस मनाने की जरुरत–
आदिवासी समुदाय की कुल आबादी दुनिया की आबादी का 5% से भी अधिक है और गरीबी में इनकी हिस्सेदारी 15% से भी अधिक है, इनकी अनुमानित भाषाएं 7000 हैं, और साथ ही यह 5000 विभिन्न संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करती हैं, इसलिए आदिवासी समुदाय के संबंध में जागरुकता बढ़ाने और इनकी सामाजिक– आर्थिक उत्थान सुनिश्चित करने तथा इनकी भाषा एवं संस्कृति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी दिवस मनाया जाता है।
भारत में आदिवासी समुदाय–
भारत में तकरीबन 705 अनुसूचित जनजाति समूह मौजूद है, इनकी सबसे अधिक आबादी मध्य प्रदेश में हैं , उसके बाद महाराष्ट्र , उड़ीसा और राजस्थान स्थान हैं। भारत के साथ राज्यों में आदिवासियों की सबसे अधिक आबादी मौजूद हैं– मध्य प्रदेश > छत्तीसगढ़ > झारखंड > ओडिशा > महाराष्ट्र > गुजरात > राजस्थान।
पूर्वोत्तर के राज्यों में आम लोगों की तुलना में आदिवासियों की जनसंख्या अधिक है ,लगभग 90% आदिवासी समूह ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं , भारतीय संविधान में आदिवासी समुदाय की रक्षा के लिए कई प्रावधान किए गए हैं, इसमे पांचवी और छठवी अनसूची प्रमुख हैं, पांचवी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को छोड़कर सभी अनुसूचित क्षेत्रों में जनजाति आबादी के हितों की रक्षा करती है। छठवीं अनुसूची असम, मेघालय ,त्रिपुरा और मिजोरम के जनजाति आबादी के हितों की रक्षा करती है। पांचवी अनुसूची इसमें निर्णय लेने का रिकॉर्ड राज्यपाल को दिया गया है। छठवीं अनुसूची निर्णय लेने का अधिकार आम लोगों को है
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आदिवासियों के स्वास्थ्य में क्या-क्या चुनौतियाँ है ?
2016 में लैंसेट के द्वारा शिशु मृत्यु दर को लेकर एक रिपोर्ट पेश की गई थी, इस रिपोर्ट कि मुताबिक आदिवासी लोगों के बीच शिशु मृत्यु दर पाकिस्तान के बाद भारत में सबसे अधिक है।
2018 में जनजातीय स्वास्थ विशेषज्ञ समिति ने आदिवासी स्वास्थ पर पहली रिपोर्ट पेश की थी इस रिपोर्ट में आदिवासियों के समक्ष चुनौतियों को बताया था और साथ ही अपने कुछ सुझाव भी दिए थे।
चुनौतियां–
आदिवासी लोग भारत के 809 ब्लॉकों में रहते हैं, यह क्षेत्र अनुसूचित क्षेत्र के रूप में नामित है, आधी जनजाति आबादी इन क्षेत्रों से बाहर रहती है ,जिसकी वजह से उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाता है ।अन्य बच्चों की तुलना में आदिवासी बच्चों के में कुपोषण 50% से अधिक देखने को मिला है ।
भारत में आदिवासी लोगों में मलेरिया और तपेदिक जैसे संचारी रोग एक चुनौती उत्पन्न कर रहे हैं । देश की कुल आबादी में आदिवासी समुदाय की हिस्सेदारी 8.6 प्रतिशत के आसपास है, मलेरिया से कुल मौतों में आधी मौत जनजाति समुदाय के बीच होती है, इसके साथ ही आदिवासी समुदाय के बीच मानसिक रोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है ।
आदिवासी लोगों की अत्यधिक निर्भरता सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ केंद्र पर है जहां सुविधाएं अच्छी नहीं है, इन क्षेत्रों ने स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी है । भारत के अन्य क्षेत्रों की तुलना में आदिवासी क्षेत्रों की अस्पतालों में 27–40% तक सुविधाओं में कमी देखने को मिलती है और डॉक्टरों की भी 33– 84% तक कमी देखने को मिलती है। राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य नीति निर्माण में आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व काम है, जिसकी वजह से आदिवासियों के लिए कोई विशिष्ट नीति नहीं है, आदिवासी समुदाय के लोगों को राजनीतिक महत्व नहीं दिया जाता जिसकी वजह से ये लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं ।
आदिवासी समुदाय के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था–
13 सितंबर 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वदेशी लोगों के अधिकारों की घोषणा की गई ,इसमें स्वदेशी लोगों के अस्तित्व ,सम्मान और कल्याण के लिए यूनतम मानक निर्धारित किए गए ।
अनुच्छेद 7– स्वदेशी व्यक्तियों को जीवन शारीरिक और मानसिक अखंडता, स्वतंत्रता के अधिकार हैं ।
अनुच्छेद 38– सरकार स्वदेशी लोगों के साथ परामर्श और सहयोग से विधायि कानून सहित उचित उपाय करेगी ।
अनुच्छेद 39– अधिकारों के उपयोग हेतु स्वदेशी लोगों को राज्यों से और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्राप्त करने का अधिकार है ।
निष्कर्ष –
राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ कार्य योजना–
इस योजना का लक्ष्य आने वाले 10 वर्षों में आम लोगों और आदिवासी समुदाय के बीच स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवाओं के बीच मौजूद अंतर को कम करना है । इसके लिए अतिरिक्त धन आवंटित किए जाएं ताकि जनजाति लोगों पर प्रति व्यक्ति सरकारी स्वास्थ्य व्यय राष्ट्रीय नीति 2017 के तहत निर्धारित लक्ष्य 2.5 के बराबर किया जा सके। जिससे स्वास्थ्य अवसंरचना विकसित की जा सके।